Property Rules 2025: 6 चौंकाने वाले कारण जिनसे बच्चों का हिस्सा खत्म, मौका हाथ से न जाए

Published On: August 17, 2025
Property Rules 2025

भारत में संपत्ति का बंटवारा सदियों से एक संवेदनशील विषय रहा है। खासकर जब यह बात माता-पिता की संपत्ति में बच्चों के अधिकार की हो। वर्षों से लोगों के बीच यह धारणा रही कि माता-पिता की संपत्ति का स्वाभाविक हक बच्चों को जन्मसिद्ध अधिकार के तौर पर मिलता है। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न कानूनों में हुए बदलावों ने इस धारणा को प्रभावित किया है। अब एक नए नियम और फैसले के तहत कुछ खास परिस्थितियों में बच्चों को माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा। यह बदलाव संपत्ति विवादों को कम करने और न्याय को सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है।

इस नए नियम का मकसद यह है कि संपत्ति का बंटवारा पारिवारिक सदस्यों के बीच न्यायपूर्ण और स्पष्ट रूप से हो। साथ ही, बच्चों की जिम्मेदारी भी उभारी गई है, ताकि वे न केवल अधिकार मांगें, बल्कि माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी भी संभालें। इस लेख में हम इस नई संपत्ति नीति के महत्वपूर्ण पहलुओं को सरल हिंदी में समझेंगे, जिससे आम आदमी को इसका बेहतर ज्ञान हो सके।

Property Rules 2025

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि अगर माता-पिता ने अपनी संपत्ति का बंटवारा वसीयत के जरिए या कानूनी तौर पर कर दिया है, तो बच्चे उस संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकते। इसका मतलब यह हुआ कि अगर माता-पिता ने अपनी संपत्ति में किसी अन्य व्यक्ति को हिस्सा देने के लिए वसीयत बनाई है, तो बच्चे उस हिस्से के हकदार नहीं रहेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि जब तक संपत्ति को संयुक्त परिवार की प्रॉपर्टी के रूप में बांटा नहीं जाता, तब तक वह संपत्ति स्व-स्वामी (self-acquired) होती है। इसका अर्थ यह है कि माता-पिता अपनी संपत्ति को स्वतंत्र रूप से बेच या बाँट सकते हैं, और बच्चों को अपने हिस्से का दावा करने का अधिकार तभी मिलेगा जब संपत्ति का कानूनी तौर पर बंटवारा हो।

इसके अलावा इस फैसले में यह भी साफ किया गया है कि अगर बच्चे धर्म परिवर्तन कर लेते हैं या माता-पिता की हत्या में शामिल पाए जाते हैं तो उन्हें भी उस संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा। यह नया नियम बच्चों के अधिकारों के साथ-साथ उनकी जिम्मेदारियों पर भी ध्यान देता है।

सरकार या न्यायपालिका से जुड़ी योजनाएं एवं नियम

यह नया नियम किसी सरकार की स्कीम के तहत नहीं आया बल्कि शीर्ष अदालतों के फैसलों और हिन्दू उत्तराधिकार कानूनों की व्याख्या के आधार पर लागू हुआ है। इससे पहले हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 ने बेटे और बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार दिए थे। लेकिन एक नई सुप्रीम कोर्ट की कसौटी ने यह सुनिश्चित किया कि केवल कानूनी बंटवारे के बाद ही बच्चों को संपत्ति का हक मिलेगा।

इस फैसले की प्रमुख विशेषता यह है कि माता-पिता की संपत्ति का बंटवारा अब स्पष्ट और अंतिम रूप से होना चाहिए। यदि कोई पारिवारिक संपत्ति है, तो उसके बंटवारे के बाद जो हिस्सा प्रत्येक सदस्य को मिला है वह उसकी व्यक्तिगत संपत्ति बन जाती है। वे इसका प्रयोग खरीदने, बेचने या वसीयत करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। बच्चों को केवल वही हिस्सा मिलेगा जो उनके लिए कानूनी रूप से आरक्षित रहेगा।

साथ ही, यह निर्णय बच्चों को सदाचार और जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित करता है। जब बच्चे माता-पिता की देखभाल नहीं करते, तो उनके संपत्ति अधिकारों को कोर्ट द्वारा सीमित भी किया जा सकता है। इसका मकसद बुजुर्ग और सेवा के अधिकारों की रक्षा करना है।

इस नियम का आवेदन और प्रभाव

इस नियम के अनुसार अगर माता-पिता ने संपत्ति का कोई वसीयत बना दिया है, तो बच्चों का उस संपत्ति पर दावा खत्म हो जाता है। इसलिए अब परिवारों को चाहिए कि वे अपने संपत्ति बंटवारे और वसीयत बनाने के मामलों में ज्यादा सावधानी बरतें।

नया नियम यह भी बताता है कि अगर joint Hindu family की संपत्ति का विभाजन हो चुका है, तो उस संपत्ति के हिस्से अब self-acquired माने जाएंगे। इसलिए उस हिस्से पर बच्चे का कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होगा। वे केवल कानूनी बंटवारे से जुड़े हिस्से में ही अपना दावा कर सकते हैं।

जिन लोगों को इस नियम के तहत अपनी संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित करना है, वे वसीयत या कानूनी दस्तावेज जरूर बनाएं। इसके लिए पारिवारिक संपत्ति का स्पष्ट रिकॉर्ड रखना और सभी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करना जरूरी रहेगा। अगर कोई विवाद होता है तो अदालत ऐसे मामलों में पहले से बने फैसलों के आधार पर अपना निर्णय देगी।

इस नियम का प्रभाव विशेष रूप से उन परिवारों में देखने को मिलेगा जहां संपत्ति विवाद आम हैं। इससे भविष्य में ऐसे विवाद कम होंगे और संपत्ति के बंटवारे में पारदर्शिता बढ़ेगी।

निष्कर्ष

अंततः यह स्पष्ट हो जाता है कि अब बच्चों को माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलने के लिए सिर्फ उनका जन्मसिद्ध अधिकार नहीं बनाएगा। संपत्ति का कानूनी बंटवारा और वसीयत का होना अनिवार्य होगा। साथ ही बच्चों की भी जिम्मेदारियां तय होंगी। यह नया नियम संपत्ति विवादों को कम करने और बुजुर्गों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का एक कदम है। इसलिए परिवारों को चाहिए कि वे अपने संपत्ति के मामलों में सावधानी बरतें और उचित कानूनी सलाह लेकर निर्णय लें।

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