बैंकिंग सिस्टम हमारे देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हम अपना पैसा सुरक्षा के लिए बैंकों में जमा करते हैं ताकि वह सुरक्षित रहे और उस पर ब्याज भी मिल सके। लेकिन कभी-कभी कुछ बैंक आर्थिक समस्याओं के कारण डूब सकते हैं। ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि बैंक डूबने पर हमें कितना पैसा वापस मिलेगा और इससे हमारी बचत पर क्या असर पड़ेगा। सरकार ने हाल ही में इस मामले में सुरक्षा कड़ी करने के लिए खास नियम बनाए हैं, जो हर जमा धारक के लिए बेहद जरूरी हैं। इस लेख में हम आपको सरल भाषा में सरकार के नए नियमों और आपके पैसे की सुरक्षा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी देंगे।
जब कोई बैंक खराब वित्तीय स्थिति में आता है और उसका लाइसेंस रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) द्वारा रद्द कर दिया जाता है, तब बैंक डूबने की स्थिति बनती है। ऐसी स्थिति में जमा धारक अपने पैसे खोने का डर महसूस करते हैं। इसलिए सरकार ने डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) नामक संस्था बनाई है जो जमा का बीमा करती है। इसका उद्देश्य लोगों को आर्थिक सुरक्षा देना और बैंक गिरने पर उनकी जमा राशि को सुरक्षित रखना है।
बैंक डूबने पर पैसे वापस मिलने का नियम
सरकार ने 4 फरवरी 2020 को डिपॉजिट इंश्योरेंस एक्ट में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया। इसके पहले, बैंक में जमा राशि पर अधिकतम 1 लाख रुपये की गारंटी थी। लेकिन अब इस सीमा को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया गया है। इसका मतलब यह है कि यदि आपका बैंक डूब भी जाता है, तो आपको आपके खातों में जमा राशि और उस पर मिलने वाले ब्याज समेत कुल 5 लाख रुपये तक की राशि वापस मिलेगी।
यह नियम सभी प्रकार के बैंक खातों पर लागू होता है, चाहे वह सेविंग्स अकाउंट हो, करंट अकाउंट हो या एफडी (फिक्स्ड डिपॉजिट)। अगर आपका एक ही बैंक की कई शाखाओं में खाते हैं, तब भी उस बैंक से अधिकतम 5 लाख रुपये ही वापस मिलेंगे, न कि खातों की कुल रकम। यह राशि पुनर्भुगतान लगभग 90 दिनों के भीतर दी जाती है, जिस समय में DICGC बैंक के विलय या बंद होने की सूचना प्राप्त करती है।
DICGC पूरी तरह से RBI की स्वामित्व वाली संस्था है जो बैंक जमाकर्ताओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाती है। संकटग्रस्त बैंकों से प्रीमियम लेकर यह बीमा योजना चलाती है। इस तरह से आम जनता की जमा राशि सुरक्षित रहती है और उन्हें बड़े आर्थिक नुकसान से बचाया जाता है।
किस प्रकार से पैसे वापसी के लिए आवेदन करें
यदि आपका बैंक डूब जाता है, तो आपको विशेष रूप से किसी आवेदन की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि DICGC सीधे ग्राहक को भुगतान करता है। लेकिन फिर भी आपकी मूल जमा राशि और ब्याज की जानकारी, पासबुक, खाता संख्या आदि संभालकर रखना महत्वपूर्ण होता है।
रिजर्व बैंक और सरकार मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि डूबते बैंक के सभी खाताधारकों को बारी-बारी से भुगतान मिले। भुगतान की प्रक्रिया में बैंक या क्रेडिट यूनियन के दिवालियेपन की कानूनी कार्रवाई भी शामिल होती है। इस प्रक्रिया के तहत, जमा धारकों का पैसा सुरक्षित कराने का पूरा प्रयास किया जाता है।
बैंक डूबने की स्थिति में जितनी रकम 5 लाख रुपये तक बीमित है, वह 90 दिनों में भुगतान होती है। यदि आपके पास 5 लाख से अधिक राशि है, तो अतिरिक्त राशि वापस मिलने की संभावना बैंक के परिसमापन के बाद ही हो सकती है, जो लंबी प्रक्रिया होती है।
सरकार द्वारा बैंक डूबने से सुरक्षा की कड़ी
सरकार आरबीआई के साथ मिलकर बैंकों की आर्थिक सेहत पर कड़ी नजर रखती है। समय-समय पर बैंकिंग सेक्टर की समीक्षा होती है ताकि किसी भी बैंक की समस्याओं को जल्द ठीक किया जा सके। इसके अलावा, रिजर्व बैंक संकटग्रस्त बैंकों के विलय या पुनर्गठन में भी शामिल रहता है, ताकि वे फिर से मजबूत हो सकें।
नई नीति के तहत डिपॉजिट बीमा राशि 5 लाख रुपए तक पहुंचाने से जनता का विश्वास बैंकिंग सिस्टम में बना रहता है। इससे लोग अधिक भरोसेमंद होकर अपना पैसा बैंकों में जमा करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में स्थिरता आती है।
सरकार इस नियम को समय-समय पर समीक्षा कर सकती है, ताकि सभी जमा धारकों को बढ़ती महंगाई और आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार बेहतर सुरक्षा मिल सके।
निष्कर्ष
बैंक डूबने की स्थिति में आपकी जमा राशि पर सरकार के नए नियमों के तहत 5 लाख रुपये तक की गारंटी होती है। यह डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) द्वारा प्रदान की जाती है। इसके चलते आम जनता को अपने बैंक जमा की सुरक्षा का भरोसा रहता है। यदि कोई बैंक डूबता भी है, तो 90 दिन के भीतर 5 लाख रुपए तक का भुगतान किया जाता है। इस व्यवस्था से लोगों के वित्तीय हित सुरक्षित रहते हैं और बैंकिंग प्रणाली में स्थिरता बनी रहती है।