आजकल कई लोग परिवार में संपत्ति खरीदते समय पत्नी के नाम पर रजिस्ट्रेशन कराते हैं। इसका एक बड़ा कारण यह होता है कि महिलाओं के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदने पर सरकार की ओर से स्टांप ड्यूटी में छूट मिलती है, जिससे खरीदारी सस्ती पड़ती है।
इसके अलावा वित्तीय सुरक्षा के लिए भी यह तरीका अपनाया जाता है ताकि संपत्ति का अधिकार पत्नी के पास रहे। लेकिन हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाकर इस संबंध में नई स्थिति सामने रखी है, जिससे परिवारों में बड़ा बदलाव आ सकता है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर पत्नी के नाम पर खरीदी गई संपत्ति उसकी अपनी आय से नहीं खरीदी गई है तो वह संपत्ति परिवार की साझा संपत्ति मानी जाएगी। इसका मतलब यह है कि पत्नी के पास उस संपत्ति पर अकेला अधिकार नहीं होगा, बल्कि परिवार के अन्य सदस्य जैसे बच्चे भी इसमें शरीक होंगे। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ऐसा फैसला सामाजिक और कानूनी दोनों पहलुओं को ध्यान में रखकर लिया गया है, क्योंकि अक्सर गृहिणी महिलाओं के पास अपनी आय का स्वतंत्र स्रोत नहीं होता।
इसलिए पति अपनी आय से पत्नी के नाम पर जो संपत्ति खरीदता है, वह परिवार के हित में होती है। इस फैसला से पता चलता है कि संपत्ति की मालिकाना हक को समझने के लिए केवल रजिस्ट्रेशन वाला नाम ही काफी नहीं, बल्कि संपत्ति के आर्थिक स्रोत को भी देखना आवश्यक है।
Ancestral Property Law New Judgement 2025
इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक मामले में यह बात सामने आई कि पति ने अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदी थी, लेकिन पत्नी के पास अपनी कोई स्वतंत्र आय का स्रोत नहीं था। ऐसे मामले में कोर्ट ने कहा कि दी गई संपत्ति पति की आय से खरीदी गई मानी जाएगी। इसलिए वह संपत्ति व्यक्तिगत रूप से पत्नी की नहीं, बल्कि परिवार की संयुक्त संपत्ति मानी जाएगी।
यदि परिवार के अन्य सदस्य संपत्ति पर अपना दावा करते हैं, तो पत्नी अकेले निर्णय लेने या संपत्ति को बेचने, दान करने या नीलाम करने की स्वतंत्रता नहीं रखती। इस फैसले के पीछे धारा 114 के प्रावधान को आधार बनाया गया है, जो यह मानता है कि यदि पत्नी अपनी आय से संपत्ति खरीदने का प्रमाण नहीं दे पाती, तो वह संपत्ति पति की आय से प्राप्त मानी जाएगी।
यह निर्णय एक याचिका के मामले में आया, जिसमें एक बेटे ने अपने दिवंगत पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति पर अधिकार की मांग की। मामला यह भी सामने आया कि पिता ने संपत्ति पत्नी के नाम की थी, लेकिन बेटे ने तर्क दिया कि चूंकि पत्नी गृहिणी है और उसकी अपनी आय नहीं है, इसलिए वह संपत्ति परिवार की साझा संपत्ति होनी चाहिए। कोर्ट ने पक्ष में निर्णय देते हुए संपत्ति को पारिवारिक संपत्ति माना, जिससे बच्चे और परिवार के अन्य सदस्य भी इसका हिस्सा होंगे।
इस फैसले का परिवार और संपत्ति खरीदने वालों पर असर
यह हाई कोर्ट का निर्णय कई परिवारों के लिए महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। बहुत से लोग वित्तीय लाभ के लिए पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदते हैं, खासकर स्टांप ड्यूटी में छूट पाने के लिए। लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि उस संपत्ति पर पत्नी का अकेला अधिकार नहीं होगा, जब तक वह संपत्ति अपनी कमाई से खरीदी गई न हो। इसका अर्थ यह है कि परिवार के अन्य सदस्य भी संपत्ति पर दावा कर सकते हैं और पत्नी को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की अनुमति नहीं मिलेगी।
साथ ही, इस फैसले से यह भी समझ में आता है कि संपत्ति खरीदते समय आर्थिक स्रोत का स्पष्ट रिकॉर्ड रखना आवश्यक है। यदि संपत्ति पति की कमाई से खरीदी गई है और पत्नी के नाम की गई है, तो इसे बेनामी मामलों के दायरे में भी रखा जा सकता है। सरकार ने बेनामी संपत्ति से निपटने के लिए ‘बेनामी लेन-देन निषेध अधिनियम, 1988’ को कड़ा किया है, जिससे गलत तरीके से नाम का इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है। कोर्ट ने कहा है कि ऐसी संपत्ति जब्त भी की जा सकती है और जुर्माना या जेल की सजा भी हो सकती है।
सरकार और कानून की क्या व्यवस्था है?
सरकार की तरफ से महिलाओं को संपत्ति के अधिकार दिलाने के लिए कई कानून बने हैं, जैसे कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, जो पत्नी को पति की संपत्ति में समान हिस्सा देता है। लेकिन जीवनभर उस संपत्ति का स्वतंत्र मालिकाना हक तब तक पत्नी को नहीं मिलता जब तक वह संपत्ति अपनी कमाई से न खरीदे। अगर पति की आय से खरीदी गई संपत्ति पत्नी के नाम है, तो वह सामान्यतः परिवार की सहभागिता में आती है।
इसके अलावा सरकार ने महिलाओं को आर्थिक सशक्त बनाने के लिए कई योजना शुरू कर रखी हैं, ताकि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र बन सकें और अधिकारों को बेहतर समझ सकें। ऐसे फैसले महिलाओं को वित्तीय समझ और पारिवारिक सम्बंधों को सही से संतुलित करने का संदेश भी देते हैं।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला पति के नाम की आय से पत्नी के नाम पर खरीदी गई संपत्ति को पारिवारिक संपत्ति माना है। इसका मतलब यह हुआ कि पत्नी के नाम की संपत्ति पर उसका अकेला अधिकार नहीं होगा जब तक वह संपत्ति अपनी कमाई से खरीदी न गई हो।
इसके असर से परिवारों को संपत्ति के विवाद और अधिकारों को लेकर ज्यादा सावधानी बरतनी होगी। यह फैसला संपत्ति खरीदने वालों के लिए महत्वपूर्ण है और यह बताता है कि आर्थिक स्रोत और पारिवारिक हित दोनों को समझना जरूरी है।