Government Decision 2025: 9 चौंकाने वाले तथ्य जो आपके परिवार की संपत्ति बदल देंगे, पढ़ना जरूरी

Published On: July 25, 2025
Government Decision 2025

भारत में परिवार और संपत्ति का विषय सदियों से गहराई से जुड़ा हुआ है। पारंपरिक भारतीय समाज में अक्सर माना जाता था कि बेटे को माता-पिता की संपत्ति पर पहली प्राथमिकता और हक मिलता है। लेकिन बदलते समय के साथ सरकार ने इस पर कई नये नियम और कानून बनाए हैं, ताकि बुजुर्गों की सुरक्षा हो सके और परिवार के भीतर संपत्ति के विवादों को कम किया जा सके। हाल ही में सरकार ने ऐसा बड़ा फैसला लिया है, जिसके तहत बेटे को माता-पिता की संपत्ति पर तब तक कोई स्वतः अधिकार नहीं मिलेगा, जब तक कुछ खास शर्तें पूरी न हों। यह फैसला पारिवारिक इकाइयों और संपत्ति के अधिकारों को लेकर एक अहम मोड़ है।

यह निर्णय खासकर बुजुर्गों की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा लागू किया गया है। इसका मकसद है कि बुजुर्ग अपने जीवनकाल में अपनी संपत्ति का पूरा अधिकार बरकरार रखें और बिना उनकी अनुमति या सहमति के उनकी संपत्ति पर कोई हक जमाने की मनाही हो। इस नीति के माध्यम से पिता या माता की संपत्ति को लेकर बेटों के बीच हो सकने वाले झगड़े और विवादों को नियन्त्रित किया जा सकेगा। साथ ही, यह नए नियम केवल बेटे तक सीमित नहीं हैं, बल्कि बेटी सहित सभी वारिसों के लिए बने हैं, फिर भी बेटे को लेकर यह खास प्रावधान ज्यादा चर्चा में है क्योंकि बेटों को पारंपरिक तौर पर संपत्ति का मुख्य अधिकार माना जाता रहा है।

बेटे का माता-पिता की संपत्ति पर हक कब तक नहीं होगा?

सरकार के नए फैसले के अनुसार, बेटों का माता-पिता की संपत्ति पर तभी हक होगा जब माता-पिता जीवित हों, तब बेटों को संपत्ति का कोई अधिकार नहीं होगा। इसका मतलब है कि माता-पिता की संपत्ति उनके जीवनकाल में उनके नियंत्रण में रहेगी और वे अपनी इच्छानुसार उसे प्रबंधित या विभाजित कर सकेंगे। बेटे या किसी अन्य वारिस को तब तक संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा जब तक माता-पिता संपत्ति का बंटवारा न करें या वे अपनी संपत्ति को वसीयत के माध्यम से न दें।

इसका उद्देश्य खासकर यह सुनिश्चित करना है कि बच्चे माता-पिता की संपत्ति पर ऐसे अधिकार का दावा न कर सकें जिससे उनके माता-पिता का जीवनकाल असुरक्षित या परेशान हो। इस नियम के अंतर्गत, बेटे को यह अधिकार करने के लिए माता-पिता की स्पष्ट अनुमति या वसीयत की आवश्यकता होगी। इसी नियम के तहत, अगर कोई बेटा बिना माता-पिता की सहमति के उनकी संपत्ति में हक जमाने की कोशिश करता है या महत्त्वपूर्ण संपत्ति को कब्जा करने के प्रयास करता है, तो कानून उसके खिलाफ कार्रवाई करेगा।

माना जाता है कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट के निर्णयों एवं नए संपत्ति कानूनों पर आधारित है, जो माता-पिता की सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हैं। उदाहरण के लिए, बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस संबंध में कहा है कि जब तक माता-पिता जीवित हैं, बच्चे का उनकी संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता। यह न्यायालय ने एक ऐसे मामले में स्पष्ट किया था, जहां मां अपने बीमार पति की संपत्ति को बेचने की अनुमति चाहती थी, लेकिन बेटे ने इसका विरोध किया था।

नया कानून और इससे जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातें

यह नया नियम 2024-25 में लागू हुए संपत्ति कानून और अदालतों के फैसलों के अनुसार है। इसमें संपत्ति के दो मुख्य प्रकारों को ध्यान में रखा गया है – पैतृक संपत्ति और स्वयं अर्जित संपत्ति। पैतृक संपत्ति वह होती है जो कई पीढ़ियों से बिना विभाजन के परिवार में चली आ रही होती है, जबकि स्वयं अर्जित संपत्ति वह होती है जो माता-पिता ने अपनी आय या मेहनत से कमाई है।

नए नियमों के अनुसार, पैतृक संपत्ति में बेटों और बेटियों का जन्म से ही बराबर का हक होता है, और इसे माता या पिता अपनी मर्जी से किसी एक को देने में सक्षम नहीं होते। वहीं, स्वयं अर्जित संपत्ति पर माता-पिता का पूरा अधिकार होता है, और वे इसे अपनी इच्छा अनुसार किसी को भी दान या वसीयत कर सकते हैं। लेकिन इस पूरी व्यवस्था में यह साफ किया गया है कि किसी भी वारिस को तब तक स्वचालित अधिकार नहीं मिलेगा जब तक माता-पिता उसकी अनुमति न दें या संपत्ति का बंटवारा न करें।

साथ ही, अदालतों ने यह भी माना है कि यदि कोई बच्चा अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल नहीं करता, तो वह संपत्ति में से वंचित भी किया जा सकता है। इस प्रकार, परिवार में सद्भावना और जिम्मेदारी का महत्व भी कानून में जगह पा रहा है।

सरकार या संबंधित संस्थान की ओर से उपलब्ध सहायक योजनाएं

सरकार ने बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए कई योजनाएं भी शुरू की हैं ताकि वे आर्थिक रूप से सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें। इसके तहत वृद्धावस्था पेंशन योजना, वृद्धों के लिए हेल्थकेयर सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं उपलब्ध हैं। यह कदम संपत्ति विवाद कम करने के साथ बुजुर्गों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी है।

साथ ही, सरकार ने वसीयत बनाने को भी प्रोत्साहित किया है, ताकि संपत्ति का बंटवारा साफ-साफ और कानूनी रूप से नियोजित तरीके से हो सके। वसीयत के बिना संपत्ति के विवाद आम होते रहे हैं, इसलिए इससे परिवारों को कानूनी सवालों से बचने में मदद मिलती है। इसके अतिरिक्त, कानूनी परामर्श केंद्र भी स्थापित किए गए हैं जहां परिवार अपनी संपत्ति संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए सहायता ले सकते हैं।

कैसे करें आवेदन या लाभ प्राप्त करें?

यह कोई विशेष योजना नहीं है जिसमें आवेदन किया जाना हो, बल्कि यह नई विधिक व्यवस्था और फैसले सरकार के द्वारा लागू किए गए हैं। जो भी परिवार इस नियम का लाभ उठाना चाहता है, वह सर्वोच्च न्यायालय या संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय में अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकता है।

इसके अलावा, माता-पिता को सलाह दी जाती है कि वे अपनी संपत्ति का प्रबंधन और बंटवारा न्यायपूर्ण और व्यवस्थित तरीके से करें। इसके लिए वे वसीयत बनाएं और आवश्यक कानूनी सलाह लें। यदि कोई पुत्र-पूत्री इस मामले में विवाद करते हैं, तो वे मध्यस्थता या अदालत की सहायता ले सकते हैं।

निष्कर्ष

सरकार के इस बड़े फैसले का उद्देश्य माता-पिता की संपत्ति और उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता देना है। अब बेटों को माता-पिता की संपत्ति पर स्वचालित हक नहीं मिलेगा जब तक माता-पिता जीवित हैं और उन्होंने अनुमति न दी हो। यह फैसला पारिवारिक विवादों को कम करने और बुजुर्गों को आर्थिक नियंत्रण देने में मदद करेगा। इस नई व्यवस्था से परिवारों में संतुलन और समझदारी बढ़ेगी।

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